बड़वानी। नर्मदा बचाओ के अहिसंक आंदोलन को चार दशक से भी ज्यादा समय हो गया है। इस दौरान कितनी सरकारे आई और चली गई लेकिन मांगे न तो पूरी हो पाई और नही आंदोलन समाप्त हो पाया। हैरानी की बात यह है कि इस आन्दोलन को सीढ़ी बनाकर जो सत्ता की कुर्सी पर काबिज हुए, अब वे ही इस आन्दोलन से दुरी बना रहे है।
विगत 3 दिनों से बड़वानी जिले के ग्राम बडदा में चल रहे अहिसंक सत्याग्रह और अनशन के बीच प्रशासनिक अमले ने आंदोलन की नैत्री मेधा पाटकर से सत्याग्रह समाप्त करने और अनशन तोडने का निवेदन किया। लेकिन न तो सत्याग्रह समाप्त होगा और न अनशन खत्म होगा। अब वही होगा जो हर बार होता है जबरदस्ती सत्याग्रह को कुचलकर प्रशासन द्वारा उठाया जायेगा और डूब प्रभावितों को फिर नये संघर्ष की राह अपनानी होगी।
नर्मदा आंदोलन में मेधा पाटकर के आने से पहले पूर्व सांसदगण रामेश्वर पाटीदार, भारत सिंह चौहान पूर्व विघायकगण डा। नवनीत महाजन, बाबूलाल सोनी, चांदमल लूणिया, अमोलक चन्द छाजेड, श्रीमती चन्द्रकांन्ता खोडे, सुरेश सेठ, सुभाष यादव, भंवरलाल नाहटा, गंगाराम तिवारी सहित स्थानीय जिलों से फूलचन्द पटेल, मांगीलाल जोशी, अम्बाराम मुकाती, पारसमल करनवाट, नर्मदा प्रसाद तिवारी, मदनलाल शर्मा, त्रिलोकचन्द गंगावाल सहित अनेक नाम है जिन्होंने इस आंदोलन को सींचा और आगे बढाया लेकिन राजनीतिक प्रभावो के चलते नाम पीछे हटते गये और चन्द नाम फूलचन्द पटेल, मांगीलाल जोशी, पारसमल करनावट, अम्बाराम मुकाती रह गए जिन्होंने अपनी उम्र को देखते हुये 80 के दशक में आन्दोलन की मशाल मेधा पाटकर को सौपी जो आज भी जारी है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन जारी आंकडो में और सरकार के आंकडो में डूब प्रभावितो की संख्या को लेकर अंतर जरूर है लेकिन हल निकाला जा सकता है। इस वक्त न तो चुनाव है न ही राजनीतिज्ञों को इनसे काम है। आज के नर्मदाघाटी विकासमंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल पिछले साल आंदोलन के साथ खडे थे। वे आज बात करने से कतरा रहे और प्रदेश मे नये उघमियो को लाने के लिये अमेरिका जा रहे है। सत्याग्रही के स्वास्थ्य परीक्षण के लिये डॉक्टरों के साथ आज बडदा पंहुची संयुक्त कलेक्टर रेखा राठौर को मेघा पाटकर ने विनम्रता से मना कर दिया और कहा पहले डूब प्रभावितो के अधिकार की बात करो।