लेखक वरिष्ठ पत्रकार राजेश ज्वेल की क़लम से फ़िल्म जर्नलिज़्म के दौरान फ़िल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे के साथ के संस्मरण।
एक्सपोज़ टुडे।
2 जून 1988 को शोमैन राज कपूर ने एक माह के जीवन-मौत से संघर्ष बाद आधी रात को अंतिम सांस ली थी… तब मैं दैनिक भास्कर में उपसंपादक बतौर पहले पेज का रात्रिकालीन इंचार्ज हुआ करता था… टेलीप्रिंटर पर जैसे ही राज कपूर के निधन की खबर फ्लैश हुई , मैंने तुरंत अपने वरिष्ठ सहयोगी मरहूम शाहिद मिर्जा को इसकी जानकारी दी… उन्होंने जयप्रकाश चौकसे को फोन लगाया और राज कपूर पर कुछ लिखने को कहा… थोड़ी देर बाद मैं और शाहिदजी एचआईजी स्थित चौकसे जी के निवास पहुंचे… टपकते आंसुओं के बीच ग़मगीन चौकसे जी राज कपूर पर लिख रहे थे और थोड़ी देर पश्चात उन्होंने अपना लेख हमें पकड़ा दिया… हम तुरंत प्रेस लौटे और पहले पेज पर चौकसे जी की राज कपूर पर लिखी टिप्पणी प्रकाशित की… उस दिन हमने भास्कर का पूरा पहला पेज राज कपूर को समर्पित किया था…वैसे जय प्रकाश चौकसे से मेरी मुलाकात 1986 में तब हुई जब चंद्रगुप्त सिनेमा में फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया और तब भास्कर के स्थानीय संपादक रोमेश जोशी जी ने उसकी रिपोर्टिंग का जिम्मा मुझे सौंपा..उस फिल्म फेस्टिवल में बतौर फिल्म वितरक श्री चौकसे जी की विशेष सहभागिता थी..उस दौरान फेस्टिवल में शामिल फिल्मों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारी मुझे दी जो मैंने अपनी रिपोर्टिंग में इस्तेमाल भी की.. इस फेस्टिवल की रिपोर्टिंग के बाद ही भास्कर प्रबंधन ने मुझे हर हफ्ते रिलीज होने वाली नई फिल्मों की समीक्षाएं लिखने की जिम्मेदारी अलग से सौंप दी जो मैंने लगातार पांच सालों तक निभाई भी … उस दौरान धेनु मार्केट स्थित चौकसे जी के प्राची फिल्म्स के दफ्तर में उनसे मुलाकातें होती थी… तब चौकसे जी ने भास्कर का लोकप्रिय कॉलम पर्दे के पीछे लिखना शुरू नहीं किया था और फ़िल्म से संबंधित सामग्री मैं ही देता था और चौकसे जी से फोटो, कैसेट और अन्य जानकारियां लेता था…तब चौकसे जी राज कपूर की फिल्मों के साथ कई अन्य बड़ी फिल्मों के भी वितरक थे और साथ में यशवंत तथा बैम्बिनो जैसे सिनेमाघर भी कमीशन पर चलाते थे, जिनमें राज कपूर की पुरानी फिल्में लगाते और मुझे व शाहिद जी को देखने बुलाते… कई मर्तबा सिनेमाघर के बाहर चौकसे जी हाथ में टिकट लेकर हमारा इंतजार करते नजर आते और फिर हम साथ में फिल्म देखते और राज कपूर से जुड़ी घटनाओं का वे वर्णन करते… 5 सालों तक यह सिलसिला चला और अनगिनत मुलाकातें के साथ कई फिल्में चौकसे जी के साथ देखी.. उनके दोनों पुत्र राजू और आदित्य भी उस दौरान फ़िल्म वितरण कार्य में उनका सहयोग करते… बाद में छोटा बेटा आदित्य तो मुंबई ही शिफ्ट हो गया…फिर बाद में जब चौकसे जी ने पर्दे के पीछे लिखना शुरू किया तो तमाम पाठकों के साथ मैं भी उनका पाठक बना…अभी जब पिछले हफ्ते भास्कर के पहले पेज पर यह खबर पड़ी कि चौकसे जी का पर्दे के पीछे कॉलम आखरी बार छप रहा है… तब मैंने उनके बड़े बेटे राजू को फोन लगाकर चौकसे जी से मिलने की इच्छा जाहिर की… राजू ने बताया कि अभी पिता जी की स्थिति थोड़ी क्रिटिकल है, वे मेरा संदेश उनको दे देंगे और जल्द ही फोन लगाकर मुलाकात करवाएंगे… लेकिन ये मुलाकात नहीं हो सकी, जिसका मुझे अफसोस रहेगा…क्योंकि आज सुबह ये मनहूस खबर आ गई कि चौकसे जी नहीं रहे… चौकसे जी ने जो फिल्म लेखन किया वह नि:संदेह संग्रहणीय और बेमिसाल है… फिल्म लेखन को गंभीरता चौकसे जी जैसे चंद जानकारों ने ही दी.. राज कपूर , सलीम खान परिवार के अलावा फिल्मी दुनिया में उनके तमाम दोस्त थे, जिनके किस्से हमने पर्दे के पीछे में पढ़े… नि:संदेह आज हमने एक बेहतरीन लेखक और फिल्मों का इनसाइक्लोपीडिया खो दिया… अलविदा चौकसे जी, आप हमेशा यादों में बने रहोगे..!
राजेश ज्वेल,वरिष्ठ पत्रकार