मंदसौर। मंदसौर में कुबेर का एक ऐसा दुर्लभ मंदिर है जो साल में सिर्फ एक बार खुलता है। मंदिर के पट हर साल धनतेरस के दिन खोले जाते है। कुबेर के मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान इसे उड़ाकर यहां लाए थे।
मंदसौर के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर के नजदीक खिलचीपुर में स्थित कुबेर मंदिर में धनतेरस के दिन पूजन के लिए मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, गुजरात व अन्य राज्यों से श्रद्धालु मंदसौर पहुंचे हैं। यह शिव-कुबेर मंदिर अपने आप में अनूठा है। इसे धवलेश्वर धोरागढ़ महादेव के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ 4 फीट ऊँचा शिवलिंग हैं। मंदिर में करीब 1400 साल पुरानी कुबेर की प्रतिमा स्थापित है। पश्चिममुखी कुबेर भगवान की प्रतिमा दीवार पर उकेरी हुई है। माना जाता है कि यह प्रतिमा गुप्तकाल की है।
मान्यता है कि केदारनाथ के बाद शिव के साथ पश्चिम मुखी कुबेर प्रतिमा यहीं पर है। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए श्रद्धालुओं को झुककर जाना पड़ता है। मंदिर के दरवाजे की ऊंचाई सिर्फ तीन फीट है। मंदिर की सुरक्षा के लिए 20 साल पहले नंदीगृह में दीवार बनी थी। आने वाली 25 तारीख़ को धनतेरस के दिन सुबह चार बजे मंदिर के दरवाजों को खोला जाएगा और पूजा-अर्चना की जायेंगी।
लोगों का विश्वास है कि मंदिर में स्थापित कुबेर की प्रतिमा उत्तर गुप्तकाल में 7वीं शताब्दी में निर्मित हुई है। मराठा काल में धोलागिरी महादेव मंदिर के निर्माण के दौरान इसे गर्भगृह में स्थापित किया गया था। इस मंदिर में भगवान गणेश व माता पार्वती की प्रतिमा भी है।
डॉ. पांडेय बताते हैं कि 1978 में इस प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में देखा गया। प्रतिमा में कुबेर बड़े पेट वाले, चतुर्भुजाधारी सीधे हाथ में धन की थैली और तो दूसरे में प्याला धारण किए हुए हैं। नर वाहन पर सवार इस प्रतिमा की ऊंचाई लगभग तीन फीट है।
इसका कहना है दुर्लभ कुबेर प्रतिमा डेढ़ हजार साल पुरानी है। इसे गुप्तकाल की माना जाता है। प्रतिमा पहले अन्य किसी स्थान पर थी, जहां से इसे खिलचीपुरा स्थित शिव मंदिर में विराजित किया था। कुबेर की सबसे बड़ी प्रतिमा व प्रसिद्धि के चलते लोग इसे कुबेर मंदिर के नाम से जानने लगे। धनतेरस पर कुबेर मंदिर के पट तड़के 4 बजे खुलते है। इस दिन भोलेनाथ के साथ ही कुबेर का श्रृंगार भी किया जाता है।