एक्सपोज़ टुडे, भोपाल।
बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों से ज्यादा कांग्रेस नेता परेशान हो रहे हैं। इस झुँझलाहट के पीछे की कहानी कुछ अलग ही है।
ग्वालियर दक्षिण के वार्ड 44 के पार्षद और कांग्रेस के पुराने नेता बाबूलाल चौरसिया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बीजेपी और अन्य विपक्षी दलों से ज्यादा कांग्रेस नेता अरुण यादव मुखर हो रहे हैं। अरुण यादव के शुरुआती विरोध से ऐसा लगा कि वो महात्मा गांधी की विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं, परन्तु जब अरुण यादव ने ट्वीट के बाद प्रेस रिलीज, प्रेस रिलीज के बाद वीडियो सन्देश, वीडियो सन्देश के बाद पत्रकारों से चर्चा और पत्रकारों से चर्चा के बाद सोशल मीडिया में चल रही अनावश्यक पोस्ट को लाइक और री-ट्वीट करना शुरू किया तब अरुण यादव के मंसूबे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पता चले।
दरअसल अरुण यादव और बाबूलाल चौरसिया के बीच की खुन्नस आज की नहीं बल्कि 7 साल पुरानी है। पिछले नगरीय निकाय चुनाव में बाबूलाल चौरसिया ग्वालियर दक्षिण के वार्ड क्रमांक 44 से पार्षद का टिकट मांग रहे थे। बाबूलाल चौरसिया ने कांग्रेस के पार्षद बनने की जमीनी तैयारी पांच वर्षों से कर रखी थी व उनकी जीत पर स्थानीय नेताओं से लेकर जनता तक को कोई संदेह नहीं था, बावजूद इसके तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने न केवल बाबूलाल चौरसिया का टिकट काटा बल्कि सार्वजानिक तौर पर उन्हें कई बार बेइज्जत भी किया। अरुण यादव की प्रताड़ना से तंग आकर बाबूलाल चौरसिया ने हिन्दू महासभा ज्वाइन की और जीतकर पार्षद भी बने।
बाबूलाल चौरसिया ने अरुण यादव पर नगरीय निकाय चुनाव में टिकट बिक्री का आरोप लगाते हुये कांग्रेस छोड़ दी और उनका व्यक्तिगत द्वन्द और विरोध अरुण यादव से शुरू हो गया। बाबूलाल चौरसिया द्वारा अरुण यादव पर निकाय चुनाव में टिकट बिक्री का आरोप लगाने के बाद जब प्रदेश के अन्य कई हिस्सों से टिकट बिक्री की शिकायत मिली तो अरुण यादव और बाबूलाल चौरसिया के बीच की खाई और बढ़ गई। नतीजा ये तक हुआ की पूरे प्रदेश में पिछले नगरीय निकाय चुनाव की करारी पराजय का जिम्मेदार अरुण यादव के गलत एवं अनैतिक लाभ के लिए प्रत्याशी चयन में किये समझौते को माना जाने लगा।
*बात करें वर्तमान विवाद की तो कांग्रेस के एक पुराने नेता के कांग्रेस में वापस लौटने से अनावश्यक क्षुब्द अरुण यादव बेशक कुछ दिनों की सुर्खियाँ बटोरने में कामयाब हो जाएँ परन्तु उनकी ये अस्तरीय और छिछली राजनीति ने उनके कांग्रेस से हटकर नये राजनीतिक मार्ग की तलाश की आशंकाओं को और मजबूत कर दिया है। अरुण यादव के दो खासमखास विधायकों के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने के बाद से संदेह के घेरे में चल रहे अरुण यादव अब बहोत दिनों तक सच्चे कांग्रेसी होने का नकाब शायद ही संभाल पायें।*