November 23, 2024

मांगिए बप्पा से जो माँगेंगे वह ज़रूर मिलेगा।

लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर है और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी है।
एक्सपोज़ टुडे, भोपाल।
रविवारीय गपशप
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इन दिनों चारों ओर गणेश उत्सव की धूम है , दस दिनों तक पुरे देश में “गन्नू भैय्या” के कई रूप देखने को मिलेंगे | यद्यपि कोरोना महामारी के कारण गणपति पांडालों में कुछ सावधानियाँ बरतने के निर्देश हैं , लेकिन उत्सवों की चहल पहल तो रहेगी | हमारे देश में गणेश उत्सव के सार्वजानिक रूप से मनाने की शुरुआत शिवाजी महाराज के जमाने से ही हो गयी थी , पर मुख्यतः महाराष्ट्र में मनाये जाने वाले इस उत्सव को पूरे देश में धूमधाम से मनाने की परंपरा श्री बाल गंगाधर तिलक ने 1894 में आरम्भ की थी | ये उनके स्वराज के सपने को जन जन से जोड़ने का बेमिसाल मन्त्र था |
गणेश विघ्न हर्ता भी हैं और विघ्न कर्ता भी , देवासुर संग्राम में देवो के लिए वे विघ्न हर्ता थे तो असुरों के लिए विघ्न कर्ता | गणेश के पूरे विन्यास के बड़े गूढार्थ हैं | गजमुख के एक एक अंग की अपनी एक व्याख्या है , सूंड जो है वो शक्ति और क्षिद्रान्वेषण के बीच साम्य का प्रतीक है , बड़े कान जो हैं वे ये दर्शित करते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति सबकी सुनता है , एरोगेंट नहीं होता | गणपति अपने भक्तों की एक भी पुकार अनसुनी नहीं करते , उनकी हस्तमुद्राओं की भी अलग अलग व्याख्या है | यहाँ तक कि उनका वाहन जो कि मूषक है , उसका भी निहितार्थ है | चूहा सबसे लालची जीव है और लालच को बुद्धिमान व्यक्ति अपने नियंत्रण में रखता है जो उसकी जिजीविषा के रूप में उसे मंजिल तक तो ले जाए पर भटकाए न |
भगवान गणेश के अनेक रूपों का विभिन्न कवियों और लेखकों ने तरह तरह से महिमा गान किया है , और दिलचस्प बात यह कि अपने आराध्य का प्रेम भी गणपति से ही माँगा है , यानी जो कुछ भी आप चाहते हो वो बिना बाधा के सहज संभाव्य हो तो गणपति की कृपा ज़रूरी है | प्रथमेश की सबसे प्रसिद्द आरती है ; जय गणेश – जय गणेश -जय गणेश देवा , इसकी एक गूढ़ बात देखें | ये प्रसिद्द आरती महाकवि सूरदास ने लिखी है , तो पूरी वंदना तो वे गणपति की ही करते हैं , यानी कि अंधों को आँख देने की , कोढ़ियों को सुन्दर काया प्रदान करने की आदि आदि पर आखिर में कहते हैं ” सूर श्यामशरण आये सफल कीजे सेवा ” यानि आखिर में अपने घनश्याम की कृपा गणपति से मांग लेते हैं | चलिए महाकवि तुलसी दास की रचित आरती देखें “गाइए गणपति जग वंदन , शंकर सुवन भवानी जी के नंदन …….” | कितनी प्रसिद्द आरती है ? पूरी महिमा कितने सुन्दर भावों में व्यक्त है पर आखिर में अपने राम की कृपा गणपति से मांगते हैं ” मांगत तुलसीदास कर जोरे , बसहु राम सिय मानस मोरे “|
उज्जैन में चिंतामन गणेश मंदिर है , जहाँ बिना मुहूर्त के विवाह सम्पन्न कराये जाते हैं , यानी सारे विघ्नों के देवता के समक्ष ही विवाह हो रहा है तो काहे का डर | चिंतामन गणेश मंदिर का यह रिवाज़ भी बड़ा प्रसिद्ध है , कि किसी को कुछ मनोवांछा है तो वो मंदिर में जाकर उल्टा स्वस्तिक बना देता है , और जब कामना पूरी हो जाए तो जाकर भगवान को प्रणाम कर सीधा स्वस्तिक बना देता है | वर्ष 1999 की बात है , श्री कमठान डिप्टी कलेक्टर के रूप में पदोन्नत होकर उज्जैन पधारे | मैं उन दिनों वहाँ ए डी एम के पद पर था , सो कई बार आकर मेरे पास बैठ जाते | उनके हावभाव से मुझे लगा उज्जैन आकर वे प्रसन्न नहीं हैं | मैंने कारण पूछा तो कहने लगे सर मेरी पूरी नौकरी ग्वालियर-चम्बल संभाग की है तो ये क्षेत्र मुझे अजीब लगता है , आप कृपा करके मेरा तबादला वापस ग्वालियर के इलाक़े में करवा दो |
मैंने कहा भाई मेरी इतनी क्षमता तो नहीं है की ऐसे मनोवांछित परिवर्तन करा सकूँ , पर उज्जैन में चिंतामन गणेश मंदिर है , वहाँ जाकर तुम उलटा सांतिया बना आओ शायद गणपति तुम्हारी सुन लें | कमठान साहब जी सर कह कर उठ कर चल दिए , और मैं भी भूल भाल गया |
एक सप्ताह बाद कमठान जी दमकते चेहरे से मेरे कमरे में घुसे , आते ही मेरे पैर छुए और बोले सर मेरा ट्रान्स्फ़र मुरैना हो गया है , अभी गणेश जी के मंदिर में उल्टा स्वस्तिक सीधा करके सीधा आपके पास ही आया हूँ , कृपया मुझे रिलीव करवा दें | मैंने उनकी दरखास्त को स्थापना शाखा में मार्क करते हुए सोचा , मैंने तो जनश्रुति के आधार पर सलाह दे दी थी , ये तो सचमुच चमत्कार हो गया | तो दोस्तों जब महाकवियों से लेकर अफ़सर तक अपनी वाँछा की पूर्ति के लिये गणपति की शरण लेते हैं तो आप क्यों संकोच कर रहे हैं , माँगिये बप्पा से जो चाहिये |

Written by XT Correspondent