लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर है और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी है।
एक्सपोज़ टुडे, भोपाल।
रविवारीय गपशप
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आज दूरसंचार क्रांति के प्रतीक इण्टरनेट की सुगमता और सुलभता ने बहूत से प्रश्न भी खड़े कर दिये हैं |
मोबाइल और उस पर उपलब्ध सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर अनेक चिन्ताएँ समाज में आ रहीं हैं , लेकिन यह तो सच है कि इस प्रयोग ने संवाद को बहुत सुगम बना दिया है , ख़ासकर प्रशासन और पुलिस के दृष्टिकोण से |
हालाँकि पुलिस विभाग में सूचना के आदान प्रदान के लिए अब भी वायरलेस सेट का ही इस्तेमाल होता है , लेकिन सूचनाओं के आदान प्रदान के लिये अब व्हाटस्प या सिग्नल जैसे सोशल मीडिया के एप का प्रयोग ज़्यादा मुफ़ीद माना जाने लगा है |
लेकिन पुराने जमाने को याद करें , ख़ासकर तब जबकि मोबाइल फ़ोन आया ही नहीं था तब ये वायर लेस ही था जिससे संदेश एक से दूसरी जगह तत्काल भेजे जाते थे |
ये बात भी तब की ही है | वायर लेस के माध्यम से भेजे जाने वाले संदेश यूँ तो सीधे एक दूसरे को मिल जाते थे , लेकिन यदि प्रेषक और ग्रहणकर्ता के बीच दूरी ज़्यादा है तो ये संदेश पुलिस कंट्रोल रूम के माध्यम से एक दूसरे को भेजे जाते थे |
कई बार कण्ट्रोल रूम में बैठे सज्जन सन्देश की भाषा स्पष्ट न होने पर अपनी मेधा से ही उसका अर्थ निकाल कर अगले को अमल की हिदायत दे दिया करते थे |
मैं तब उज्जैन में जिला मुख्यालय पर अनुविभागीय अधिकारी के पद पर पदस्थ था | एक दिन तत्कालीन मुख्यमंत्री अपने किसी दौरे के प्रवासीय कार्यक्रम में उज्जैन आने वाले थे ,पर उन्हें उज्जैन रुकना नहीं था ,सिर्फ स्टेट प्लेन से आ कर हेलीकाप्टर से अपने अगले गंतव्य तक जाना था और उज्जैन की हवाई पट्टी में ये अदला बदली होनी थी |
आते आते ये खबर आई कि मुख्यमंत्री जी की मैडम भी साहब के साथ यात्रा पर हैं , तो कलेक्टर ने मुझे कहा कि मैं सर्किट हाउस में ही रुकूँ , वे और एस.पी. साहब हवाई पट्टी जाते हैं |
मुझे ये भी कहा कि सतर्क रहना क्योंकि यदि ये प्रोग्राम बने कि कुछ देर के लिए विश्राम भी करना है तो सर्किट हाउस में व्यवस्था दुरुस्त रहें |
इन निर्देशों के अनुरूप मैं सर्किट हाउस में तैयार बैठा था तभी मेरे ड्राईवर ने आकर कहा कि सेट (वायरलेस ) पर आपके लिए काल है | मैं तुरंत उठ कर जीप के पास गया , उन दिनों जीप में ही वायरलेस सेट लगा करते थे |
कंट्रोल रूम से वायरलेस पे बैठे सज्जन ने मुझसे कहा कि कलेक्टर साहब ने कहा है कि हवाई पट्टी पर फुग्गे भेज दो | मैं कुछ अचरज में आया ,और पूछा कि क्या मँगा रहे हैं ? उसने कहा सर फुग्गे …यानी गुब्बारे |
मुझे कुछ समझ नहीं पड़ी पर कोई और साधन था नहीं कि बात कर सकें और हवाई पट्टी बहुत दूर थी वहां कोई लेंड लाईन फोन भी नहीं था |
गुब्बारे क्यों बुलाये होंगे ये मैं सोच ही रहा था कि पुनः ड्राईवर दौड़ा दौड़ा आया और कहा फिर सेट पर काल है |
मैं पुनः गया तो सेट पर विराजमान सज्जन ने कहा की सर गुब्बारे नहीं , बुकें बुलवाई हैं | मैं कुछ और अचंभित हुआ ,पूछा बुकें ?? दूसरी तरफ से कहा गया जी सर बुकें ..यानि कि पुस्तकें -किताबें …| मैंने पूछा भाई कौन सी किताबें ? मेधा पुरुष ने जबाब दिया की ये तो नहीं बताया कि कौन सी किताबें , पर किताबें बुलाई हैं |
मैं फिर सोच में पड़ गया कि ऐसा कौन सा कानूनी मसला सामने आ गया कि किताबों की जरुरत पड़ गयी और फिर कौन सी किताब ..भू राजस्व संहिता भेजूं कि दंड प्रक्रिया संहिता या कुछ और ?? मैंने सेट पर अनुरोध किया कि किताबों के नाम तो पूछ कर बताओ |
वीतरागी पुरुष ने बड़े बेमन से ये अनुरोध स्वीकार किया | पांच मिनट बाद पुनः सेट पे आवाज गूंजी ,कण्ट्रोल टू एस डी एम सर ..मैंने तुरंत जबाब दिया ,,,जी एस डी एम हियर बताइये | और अबकी बार जो उसने जबाब दिया उसे सुन कर मेरी हंसी छुट गयी ..बोलने लगे सर बुके बुलाये हैं बुके… यानी की गुलदस्ते |
मेरी जान में जान आई और तुरंत आदमियों को दौड़ा कर ये फरमाइश पूरी की गयी | पर अब भी जब कभी वायरलेस सेट पर संवाद होते सुनता हूँ तो बरबस ये वाकया याद आ जाता है |