बांधवगढ़। दुनिया भर में बाघों के लिए मशहूर उमरिया जिले के टाइगर रिजर्व बांधवगढ़ में इन दिनों हाथियों की मौज मस्ती आपको इंसानी पिकनिक और ब्यूटी पार्लर में संजने संवरने के शौक को भी फीका कर देगा और आपको यकीन हो जायेगा कि जानवरों में भी मौज मस्ती का शौक रहता है। हाथियों की खातिरदारी का ये नजारा है बांधवगढ़ में आयोजित किए गए हाथी महोत्सव का जिसमे सात दिनों तक हाथियों के लिए न सिर्फ विशेष इंतज़ाम किये जाते है बल्कि भोजन का बाकायदा मीनू बनाकर हाथियों की पसंदीदा डिश और फ्रूट की व्यवस्था भी की जाती है। हाथियों की मौज मस्ती का ये महोत्सव खत्म हो चुका है और हाथी अब मैदान में लौटने लगे हैं।
महोत्सव के दौरान हाथियों की खुशामदी का सिलसिला अलसुबह से शुरू हो जाता है। सुबह से महावतों द्वारा सभी हाथियों को एकत्रित करने के बाद उन्हें नदी में घंटों नहलाया जाता है। उसके बाद हाथियों के नाख़ून काटे जाते हैं, फिर नीम के तेल से हाथी के पूरे शरीर की मालिश की जाती है। विशेषज्ञों व चिकित्सकों द्वारा हाथियों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता हैं और घंटों खुशामदी करने के बाद हाथियों को उनका प्रिय भोजन और फल खिलाया जाता हैं। हाथियों के लिए मक्के और बाज़रे की रोटियां, नारियल, केला, गन्ना और वो तमाम चीजें खिलाई जाती हैं जो गजराज को पसंद होती है। हाथियों की खुशामदी का यह सिलसिला एक हफ्ते तक ऐसे ही चलता रहता है। खास बात यह कि 2011 से शुरू हुए हाथी महोत्सव में पार्क प्रबंधन ने पहली बार समीप की ग्राम पंचायतों के लोगों को आमंत्रण पत्र देकर शामिल किया जिसे वन्य जीव सरंक्षण में जागरूकता के रूप में देखा जा रहा है।
बांधवगढ़ में पूरी तरह से प्रशिक्षित तकरीबन 17 हाथी मौजूद है। जिनमे से सबसे बुजुर्ग हाथी गौतम लगभग अपने अंतिम महोत्सव में शरीक हुए तो गणेश पवन और लक्ष्मी नामक युवा गजराज पहली बार महोत्सव की मौज मस्ती में शरीक हुए। इसके साथ सूर्या, अनारकली जैसी युवा हथिनी भी इस खास मौके का पूरा आनंद लेते देखी गई। खास बात यह है साल भर पार्क की सुरक्षा में जी तोड़ मेहनत करने वाले हाथियों को जब महोत्सव में लाया जाता है तो प्रबंधन भी उनकी खुशामदगी में कोई कसर नही छोड़ता। मतलब साफ है यह हाथियों के लिए न सिर्फ एक खास पार्टी होती है बल्कि जश्न मनाने का भरपूर अवसर भी कहा जा सकता।
गौरतलब है कि सैकड़ो किलोमीटर के इलाके में फैले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के जंगल के वन्यजीवों की सुरक्षा इन्ही हाथियों के बदौलत की जाती है। घने जंगलों और दुर्गम रास्तों में जहाँ वाहन चलना तो दूर पैदल चलना भी असंभव रहता है वहां हाथियों पर बैठकर वनकर्मी दिन रात गश्त करते हैं। जब कोई वन्य प्राणी घायल या अस्वस्थ होता है तो इन्ही हाथियों पर बैठकर चिकित्सक उस वन्य प्राणी तक पहुँच पाते हैं। मतलब साफ है बांधवगढ़ में मौजूद वन्य प्राणियों की सुरक्षा इन्ही हाथियों पर निर्भर होती है। यही वजह है कि पार्क प्रबंधन के द्वारा मानसून के दौरान प्रतिवर्ष हाथियों के लिए रिजुनेशन कैम्प का आयोजन कर सात दिनों तक हाथियों की जमकर मेहमाननवाज़ी की जाती है।