लेखक डॉ आनंद शर्मा सीनियर आईएएस हैं और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी रहे हैं।
रविवारीय गपशप
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कुछ जगहें आपके दिल में अपनी बेशुमार यादों के साथ ऐसी पेबस्त होती हैं कि सालोंसाल किसी कोने में सोयी पड़ी रहती हैं , पर सामने पड़ जाने पर यकायक उठ कर ऐसी घिर आती हैं , मानो सर्दियों के महीने की सुबह में कोहरे की चादर । ग्वालियर मेरे लिये ऐसा ही शहर है , जहाँ मैंने अपनी ज़िंदगी के बेहतरीन आठ साल गुज़ारे और फिर शहर छोड़ने के बाद शायद ही इत्मीनान से वापस जा पाया । नौकरी में रहते- रहते जब प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के साथ ग्वालियर जाना हुआदल तो उसे जाना कहना औपचारिकता ही थी । चुनावी दौरों की भागमभाग में व्ही.आई.पी. के साथ लगे रहना और बिना किसी से मिले वापस आ जाने को भी कोई जाना कहा जा सकता है ? पर इस बार मेरे बेटे के दोस्त की शादी के निमंत्रण में जब ग्वालियर जाना हुआ और इत्मीनान से शहर घूमा तो फिर सारी यादें ताज़ा हो आयीं ।
ग्वालियर की एक और बात मज़ेदार है । आप ट्रेन में सफ़र करने वाले किसी सहयात्री से पूछते हैं कहाँ जा रहे हैं ? जवाब मिलता है ग्वालियर , आप कहते हैं , अच्छा आप ग्वालियर में रहते हैं ? जी नहीं शिंदे की छावनी में । कभी जवाब मिलता है नहीं मुरार में , नहीं कंपू में , नहीं थाटीपुर में । यानी ग्वालियर में रहने वाला शायद ही कभी कहे कि हाँ वो ग्वालियर में रहता है । ग्वालियर और उसके आसपास पुरासम्पदाओं के भंडार और पर्यटन के ढेरों आकर्षण हैं । ग्वालियर फोर्ट , तानसेन का मक़बरा , सिंधिया पैलेस , गुजरी महल जैसी अनेक ऐतिहासिक इमारतें , सन टेम्पल और मानमंदिर जैसे खूबसूरत मंदिर , और प्रकृति के कई करिश्माई स्थल , पर मेरे दिल के सबसे क़रीब है महाराज बाडा जिसे उन्नीसवीं सदी में ग्वालियर के महाराज जयाजी राव सिंधिया और माधौ राव सिंधिया के कार्यकाल में तकसीम किया गया था । इस खूबसूरत स्थल को , जिलोसे ग्वालियर वासी बाड़ा कहते हैं , बेहद खूबसूरत सात इमारतों से सजाया गया है , जिनमें ब्रिटिश शैली का विक्टोरिया मार्केट , मराठा शैली का गोरखी द्वार , इटेलियन शैली का डाकघर , रोमन और फ़्रेंच शैली के एस.बी.आई. बैंक , पर्शियन शैली का शासकीय मुद्रणालय और अरब शैली का टाउन हॉल शामिल हैं ।
ग्वालियर की एक और दिलचस्प घटना है , उन दिनों मैं परिवहन विभाग में उपायुक्त प्रशासन के पद पर पदस्थ था । उन दिनों जयेन्द्रगंज चौराहे पर , जिसे ग्वालियर वासी घोड़ा चौक कहा करते थे , जूतों की एक नई दुकान खुली , जिसमें सभी ब्रांडेड जूते उपलब्ध थे। एक रविवार मैं अपने बच्चों के साथ उन्हें टेनिस शू दिलाने दुकान पर ले गया । मैं ख़ुद जीप ड्राइव कर रहा था , भीड़भाड़ थी नहीं , सो मैंने दुकान के मुख्य द्वार के सामने ही गाड़ी लगाई और द्वार पर तैनात गार्ड की ओर सवालिया निशान से देखा तो उसने हथेली से इशारा कर कहा ठीक है , कोई बात नहीं । मैंने अपने बच्चों को जूते दिलाये और कैश काउंटर पर भुगतान करने लगा , तभी मुझे महसूस हुआ कि गार्ड से कोई बहस कर रहा है । जल्द ही मैं समझ गया कि वह दुकान का मालिक था और गार्ड को डाँट रहा था कि द्वार के समक्ष जीप क्यों खड़ी करने दी ? मैं अपना बैग लेकर गेट की ओर चला ही था कि मुझे सुनाई दिया गार्ड अपने ही मालिक से कह रहा था “ देख रहे हो गाड़ी किसकी है , ऊपर बत्ती लगी है , चुप रहो ज़्यादा बहस ना करो “। मैं ख़ुद पर झेंपा और तेज़ कदम रखते उनके पास जाकर गार्ड के कंधे पर तसल्ली का हाथ रख मालिक से गाड़ी खड़ी करने के लिए क्षमा माँगी और जल्दी से अपनी स्कॉर्पियो को मोड़ कर रेसकोर्स रोड की ओर अपने बँगले के लिए चल पड़ा ।